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Monday 28 April 2014

बदलते पैमाने

रौंद कर सब शब्द 
उससे गुजर गए,
कुछ दिल को भेद
कुछः ऊपर से निकल गए। 
अलग-अलग करना 
अब मुश्किल है, 
जिंदगी जहर बन गया 
नहीं तो जहर जिंदगी मे घुल गये। 
लानत और जिल्लत के बीच
वो खुद को ढूढ़ रहा था,
जलालत की सब बातें जब से
इंसानी सरोकारों में मिल गए।
सबने चिंता दिखाया 
कल के लिये सब बैचेन दिखे,
कुछ को देश निकाला मिला तो 
कुछ को समुन्दर मे डुबों दिये।
बदलेगा क्या 
ये तो वक्त बताएगा, 
किन्तु सब भाव अब 
वोट के कीमत मे सिमट  गये। 
जो जरिया है और   
तरक्की का पैमाना है बना,  
उस लोकतंत्र में चुनाव ने  
सारे पैमाने बदल दिये। ।